LSE (लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स) के विद्वान मुकुलिका बनर्जी और सुमंत्र बोस बता रहे हैं कि भारतीय वोट क्यों करते हैं।
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मुकुलिका बनर्जी: भारत में हाल ही में हुए विधानसभाई चुनाव के दौरान मतदान करने वाले लोगों की संख्या अबतक की सबसे अधिक रही । राष्ट्रीय स्तर पर भी देखें तो रुझान मतदान में बढोत्तरी के हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि लोग राजनीति में अपनी भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और अकसर सबसे गरीब लोग ही सबसे उत्साही मतदाता होते हैं। जहां हम सोचते हैं कि चुनावों का रिश्ता नेताओं, राजनीतिक पार्टियों और चुनाव-परिणामों से होता है वहीं मतदाता मानकर चलते हैं कि चुनाव में उनकी अपनी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय इस बात को लेकर बड़े जागरूक हैं कि यदि चुनाव के दिन वे वोट डालने के लिए नहीं गए तो न कोई चुनाव होगा और न ही लोकतंत्र रहेगा। वोट डालने के अपने अधिकार के बारे में भारतीयों की समझ जटिल है—वे इसे एक नागरिक के नाते अपने अधिकार और कर्तव्य के रूप में देखते हैं।
सुमंत्र बोस: बीते 2009 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रस्तर पर मतदान 60 प्रतिशत से थोड़ा सा ही कम था, लेकिन भारत के विभिन्न राज्यों में मतदान के प्रतिशत के बीच भारी अंतर था। इसलिए देश के विभिन्न भागों में राज्य स्तर पर वोट डालने के प्रोत्साहक कारकों की व्याख्या करना महत्वपूर्ण है।
पूर्वी भारत स्थित मेरे गृह-राज्य पश्चिम बंगाल में, जो कि देश का चौथा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, दो दशक से अधिक समय से विधानसभा और लोकसभा चुनावों में 85-90 प्रतिशत मतदान हुआ है। इसकी वजह यह है कि पश्चिम बंगाल भारत के उन राज्यों में से एक है जिनका राजनीतिकरण सबसे ज्यादा हुआ है। पश्चिम बंगाल में अधिकतर मतदाता राज्य की राजनीति में हावी दो दलों, तृणमूल कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी, में से किसी एक के प्रति वफादार हैं। अकसर लोगों का पार्टियों के साथ बहुत गहरा पक्षपातपूर्ण जुड़ाव होता है, और देखने में आता है कि लोग सपरिवार दशकों तक किसी एक दल के साथ जुड़े रहते हैं। इस वजह से भी अधिक मतदान होता है।
उत्तरी भारत में देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश का भी अत्यधिक राजनीतिकरण हुआ है, लेकिन एक अलग ढंग से। यहां राजनीति सबसे ज्यादा संगठित जाति समूहों के आधार पर काम करती है मसलन उच्च जातियां (ब्राह्मण, राजपूत, क्षत्रिय), विभिन्न मध्यवर्ती जाति- समुदाय जैसे कि यादव, जाट और कुर्मी तथा दलित (सबसे निचली जाति) आदि। इनमें से हरेक समूह के हित दांव पर लगे होते हैं और अगर कोई भी समूह पर्याप्त संख्या में मतदान करने में विफल रहता है तो इसका मतलब होता है मुकाबले में शामिल दूसरे समूह को जीत का मौका देना।
पश्चिमी भारत स्थित मंझोले आकार के राज्य गुजरात में, पिछले एक दशक से एक राजनेता, नरेंद्र मोदी , प्रभावी हैं और अब वे भारत के भावी प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे हैं। वह अपने प्रति भावनात्मक उबाल पैदा करते हैं, बहुतों के मन में उनके प्रति अराधना का भाव जागता है तो कइयों के मन में दुराव का। यह भावोद्वेलन एक या दूसरी तरफ मतदान करने के लिए एक सम्मोहक प्रोत्साहन बन जाता है। जब दिसंबर 2012 में गुजरात में सरकार बनाने के लिए मोदी ने लगातार तीसरी बार जनादेश हासिल किया, उस समय लोकप्रिय वोट का ध्रुवीकरण हो गया था: मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 48 प्रतिशत वोट मिले जबकि राज्य के मुख्य विपक्षी दल, कांग्रेस को 40 प्रतिशत।
इसी तरह, दक्षिण भारत में सबसे बड़े राज्य, आंध्रप्रदेश में राज्य स्तर पर मतदान के मामले में मजबूत गतिकी देखने को मिलती है। हाल ही में उत्तरी आंध्रप्रदेश से एक अलग राज्य, तेलंगाना बनाने के सफल अभियान के कारण, वहाँ कई लोग एक ऐसे राजनीतिक दल को वोट डालने के लिए जोश में आ गए हैं जिसने नए राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया । इस दल का नाम है तेलंगाना राष्ट्र समिति। आंध्रप्रदेश के अन्य दो क्षेत्रों में, तेलंगाना आंदोलन और आंध्रप्रदेश के विभाजन को मंजूरी देने के कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले के खिलाफ बहुत ज़्यादा गुस्सा है। और, इस गुस्से से वाई एस आर कांग्रेस को लाभ मिलने की संभावना है। यह हाल ही में राज्य की कांग्रेस पार्टी से टूटकर बना एक क्षेत्रीय दल है। इस तरह, कह सकते हैं कि भारत में लोगों के पास वोट करने के लिए अलग-अलग प्रेरणाएं हैं, और ये सभी समान रुप से शक्तिशाली हैं।
बनर्जी: लोगों को वोट करने के लिए उकसाने वाली प्रेरणाओं को दो भागों-कार्यसाधक कारण और अभिव्यक्तिपरक कारणों में बांटा जा सकता है। कृपा और संरक्षण हासिल करने की जरुरत या फिर विकास परियोजनाओं के जुगाड़ में नेताओं के लिए वोट करने की इच्छा- ये सभी मजबूत प्रेरक तत्व हैं। लेकिन इसके साथ ही वोट डालने के कुछ विशेष गुणात्मक कारण भी हैं। ये कारण उस वक्त उजागर होते हैं जब मतदाता कुछ इस तरह की बातें कहता पाया जाता है कि “मेरा वोट मेरा हथियार है,” या जब कोई मतदाता अपने वोट का इस्तेमाल नेताओं को दंडित करने के लिए करता है। 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय वोट क्यों करते हैं शीर्षक पर केंद्रित हमारे पिछले अध्ययन में, लोगों ने हमें बताया कि उन्होंने उसी पार्टी के खिलाफ वोट डाला जिसके प्रति वे वफादार थे। कारण, वे सभी पार्टी के कामकाज से शर्मिंदा थे।
लोग वोट क्यों डालते हैं- इसका एक अन्य महत्वपूर्ण अभिव्यक्तिपरक कारण लोकतंत्र के उस पहलू को अनुभव करना है जो भारत में केवल मतदान के दिन ही प्रकट होता है। यह पहलू है समानता के भाव का। केवल चुनाव के दौरान ही आपको एक मतदाता के रूप में हर किसी के साथ बराबर माना जाता है। वर्ग, जाति और अन्य कारक पीछे रह जाते हैं, और आप अपने साथी नागरिकों के बराबर महसूस करते हैं।दरअसल, आप‘एक दिन के सुल्तान’होते हैं। इसी का एक विस्तार अपनेपन की भावना के रुप में देखने को मिलता है, अपने सरीखे लोगों से जुड़े होने की एक ऐसी भावना जो सिर्फ मतदान करने से पैदा होती है। यदि लोगों की अंगुली पर स्याही का अमिट निशान न हो तो वे खुद को पीछे रह गया महसूस करते हैं। और फिर, साथियों का भी जबर्दस्त दबाव होता है जिसकी वजह से उन्हें लगता है कि वोट नहीं डालने का अर्थ होगा अपने कर्तव्य को निभाने से चूक जाना।
बोस: मैं मुकुलिका से सहमत हूँ कि चुनाव का दिन शानदार होता है – क्षण भर को ही सही – यह दिन गैर-बराबरी दूर करने वाला होता है। कई गरीब भारतीय, विशेष रूप से, इस बात को महत्व देते हैं कि मतदान प्रक्रिया में सभी आपस में बराबर हैं यानी एक नागरिक, एक वोट। लेकिन हित भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उत्तरप्रदेश में, जहां हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी उभार पर है, मतदान के दिन मुससमानों यानी मतदाताओं के लगभग पांचवें हिस्से के लिए यह विकल्प नहीं है कि मतदान के दिन वह घर बैठा रहे। उन्हें मतदान करना ही होगा और वह सबकुछ करना होगा जिससे चुनाव के नतीजों पर उनका असर पड़े। मुझे लगता है कि इस चुनाव में उत्तरप्रदेश में मुसलमान आबादी बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए निकलेगी।